बचपन का झूला
बचपन और बारिश का मौसम , कितना अनूठा होता है न ये समय, कोई बंधन कोई रूकावट नही रोक सकती
हम बच्चे, माँ की आंख बचा कर निकल ही जाते थे, फिर धमाल को कौन रोक सकता था
पेड़ों पर रस्सी का झूला और सखियों संग झूलना , कितना मदमस्त होता था न सब
अब तो बच्चों के फोन ही सब कुछ हैं, वो धींगा मस्ती बस याद बन कर रह गई है