Sunday, August 26, 2012

लूडो और राजनीति

बुझो


याद किसी को वो मस्ती

वो एक दूसरे से लड़ना

अपनी गोटी को जीताना

आह

ये लूडो

और वो दिन 


कितने अल्हड और मस्ती भरे दिन होते थे वो 

जब एक दूसरे की आँख बचा कर उसकी गोटी को मारना और 

अपनी गोटी को जिताना
 ,उस वक्त के अल्हडपन में ये कहाँ सुध होती थी 
कि
हम तो जीवन का एक नया अध्याय  पढ़ रहे हैं 
लूडो तो बस एक साधन मात्र है 

लेकिन शिक्षा तो आज कल के जीवन की दे रही है की 

दूसरे की गोटी मारते जाओ और अपनी जीत का झंडा फेहराते  जाओ 

कौन हार रहा है या कदमो तले कुचल रहा है ये देखने की फुर्सत किसे होती थी 

और अब तो को राजनीति बना दिया है है ,

जीतनेवाले हारने वालो की तरफ मुड कर भी नहीं देखते 

इतनी प्यारी खेल को बिगाड़ कर क्या रूप दे दिया गया है .....

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