बुझो
याद किसी को वो मस्ती
वो एक दूसरे से लड़ना
अपनी गोटी को जीताना
आह
ये लूडो
और वो दिन
कितने अल्हड और मस्ती भरे दिन होते थे वो
जब एक दूसरे की आँख बचा कर उसकी गोटी को मारना और
अपनी गोटी को जिताना ,उस वक्त के अल्हडपन में ये कहाँ सुध होती थी कि हम तो जीवन का एक नया अध्याय पढ़ रहे हैं
लूडो तो बस एक साधन मात्र है
लेकिन शिक्षा तो आज कल के जीवन की दे रही है की
दूसरे की गोटी मारते जाओ और अपनी जीत का झंडा फेहराते जाओ
कौन हार रहा है या कदमो तले कुचल रहा है ये देखने की फुर्सत किसे होती थी
और अब तो को राजनीति बना दिया है है ,
जीतनेवाले हारने वालो की तरफ मुड कर भी नहीं देखते
इतनी प्यारी खेल को बिगाड़ कर क्या रूप दे दिया गया है ..... |
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