Saturday, October 24, 2015

तख्ती



             
       कलम

  
      तख्ती

   
    पढ़ाई


तख्ती पढ़ने का समय भी कितना अच्छा था
कभी तख्ती सुखाना
कभी स्याही सूख जाना और कभी
कलम का टूट जाना
वो अनमोल पल इक सपना हो गये
आज कम्पयूटर का युग है
बच्चे छी कह कर ये सब फेंक देंगे 
लेकिन तख्ती सुखाना
साथ में गुनगुनाना 
ये सब कहाँ जान पायेंगे 
बचपन की अनमोल यादें

3 comments:

  1. वाह -- लाज़बाब --अनमोल

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  2. चार साल की उम्र में पढ़ाई के शुरुआती दिनों में तख्ती हमने भी लिखी, सर जी !
    स्कूल से लौटने के बाद पहले से भिगोई हुई मुल्तानी मिट्टी तैयार रखती थी मां और तख्ती भी वही पोत देती थी। हां कुछ गीत कविता गाते हुए उसे हिलाते हुए सुखाने का आनंद हम उठाते थे।
    रोशनाई (काली स्याही) की कागज़ की पुड़िया पांच दस पैसे में मिलती थी जिस पर उर्दू में न जाने क्या लिखा होता था। रोशनाई के काले चूरे को लोहे की डिब्बीनुमा दवात में थोड़े से पानी के साथ डालकर फिर कोई गीत कविता गाते हुए बहुत देर तक सरकंडे की कलम से मिलाते थे। बताया गया था कि जितनी देर तक स्याही की घुटाई करो, उतनी रंग में गहरी बनेगी -- काली स्याह।
    सरकंडे की कलम को ब्लेड से घड़ना भी एक कला थी। शुरू शुरू में मां ही कलम घड़ कर देती थी और ताकीद देती थी -- घणी दबा कै ना लिखिये, कलम की नौक टूट ज्यागी ! =D =D

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