Friday, October 26, 2012

ग्राइप वाटर

वूड वर्ड

किस किस को याद है

किस किस ने

पिया

और

किस किस ने

पिलाया

है बच्चों को

स्वाद याद है क्या

रेडियो पर रोज़ सुनते थे

याद आया

गराईप वाटर 

Sunday, October 7, 2012

अंगीठी स्टोव

अंगीठी

इसे जलना किसे आता था

धुआं कितना लगता था

आँखों में 
स्टोव


किसी को याद है

इसकी 
स्टोव

किस किस को इसकी याद है

और किस किस ने इसे जलाया है 

Friday, October 5, 2012

डोलू

डोलू

किसी को याद है इसकी

कैसे लाइन में लग कर

रोज़ ढूध लाते थे इसमें

क्या नाम था इसका

याद है क्या

डोलू 

Friday, September 7, 2012

गुल्लक

गुल्लक

कौन कौन इसमें पैसे जमा करता था

याद आया कुछ

कौन कौन जानबूझ कर इसे तोड़ देता था

याद आया कुछ

इसका नाम पता कुछ याद आया

कितना प्यारा था वो बचपन और उसकी यादे


Monday, September 3, 2012

ट्रांसिस्टर

ट्रांसिस्टर
याद आये किसी को वो दिन

जब लाइट न होने पर

बिनाका गीतमाला इसपर सुनते थे

आजकल

तो फोन ने हर चीज़ की कमी को पूरा कर दिया है

लेकिन क्या यादो को

फोन द्वारा पूरा किया जा सकता है

किसी पडोसी के घर जब गीत बजता था

तब कैसे मचलता था मन

ट्रांसिस्टर के लिए 


Sunday, September 2, 2012

चाचा चौधरी और साबू

चाचा चौधरी
अरी भागवान कही नजर नहीं आ रही
साबू
आया चाचा जी

किसी को चाचा चौधरी और साबू याद आये
कौन सी कॉमिक्स में देखे थे
और दिन में कितनी बार एक ही कॉमिक्स
को बार - बार पड़ते थे.......

रस्सी कूदना

रस्सी कूदना


याद है  आप सब को ये खेल
मेरी तो बहुत सी यादे ताज़ा हो गयी,
इसे भारत में ही नही विदेशो में भी खेला जाता है
जब गली में छोटे बच्चे खेलते थे इस खेल  को
थोड़ी देर देखने के बाद में भी अचानक उनके खेल
में शामिल हो जाती थी,
थोड़ी देर बाद कानो में किसी के पुकारने की आवाज आती
तो मुझे अचानक अपनी मम्मी की आवाज सुनाई  देती
और में फटाक से अपने घर वापिस पहुच जाती,
थोड़ी देर तक उनसे दांत पड़ती,
फिर क्या अगले दिन में फिर वही उन्ही बच्चो के साथ.........
रस्सी कूदना


Thursday, August 30, 2012

केश निखार

केश निखार


लड़कियों और महिलाओं को तो

जरुर याद होगा ये

केश निखार साबुन

इससे बड कर तो कुछ होता ही नहीं था

शम्पूतो बहत बाद में आये

पहले तो यही चलता था

**भरजाई वालन ते कहद मंतर फेर्या इ ""


ये स्लोगन याद आया

सुबह सुबह रेडियो पर सुनते थे

एह ते केश निखार दा कमाल है .......''

किसी को याद आया  या नहीं .......

Sunday, August 26, 2012

लूडो और राजनीति

बुझो


याद किसी को वो मस्ती

वो एक दूसरे से लड़ना

अपनी गोटी को जीताना

आह

ये लूडो

और वो दिन 


कितने अल्हड और मस्ती भरे दिन होते थे वो 

जब एक दूसरे की आँख बचा कर उसकी गोटी को मारना और 

अपनी गोटी को जिताना
 ,उस वक्त के अल्हडपन में ये कहाँ सुध होती थी 
कि
हम तो जीवन का एक नया अध्याय  पढ़ रहे हैं 
लूडो तो बस एक साधन मात्र है 

लेकिन शिक्षा तो आज कल के जीवन की दे रही है की 

दूसरे की गोटी मारते जाओ और अपनी जीत का झंडा फेहराते  जाओ 

कौन हार रहा है या कदमो तले कुचल रहा है ये देखने की फुर्सत किसे होती थी 

और अब तो को राजनीति बना दिया है है ,

जीतनेवाले हारने वालो की तरफ मुड कर भी नहीं देखते 

इतनी प्यारी खेल को बिगाड़ कर क्या रूप दे दिया गया है .....