Sunday, October 20, 2013

फांउनटेन पैन

 उफ्फ कितने प्यारे दिन थे जब निब के बिना काम ही नहीचलता था, और कहीं तेज़ी से लिखते हुये टूट गई 

तो खाओ टीचर की डाँट और सारे नोटस मिस करो वो अलग... आह कितने प्यारे दिन थे वे


   
    जब निब बदलने में देर होनी
    और जल्दी करने के चक्कर में 
    सारी उंगलियाँ स्याही से भर जाती थी
     अगर कपड़ो पर भी पड़ गये स्याही के छींटे 
     तो घर आकर पिटने के लिये तैयार रहो

     
   और अगर ,लिखते लिखते इंक खतमम हो गई तो फुसफुसा कर साथ वाली से मांगना

    चाहे थोड़ी देर पहले लड़ाई हुई हो लेकिन अब जरूरत है को बोलना ही पड़ेगा


   कभी ट्यूब का खराब हो जाना और घर जा कर डाँट खाना कि अभी तो पेन ले कर दिया था, आज तोड़ कर भी ले आई 
छोटे को देख पूरे छ महीने से एक ही पैन चला रहा है
  फिर मुँह फुला कर बैठ जाना
  अम्मा से जितने भी हाथ छुपाओ उन्हे दिख ही जाती थी स्याही से भरी उंगलियें
  श्लोक सुनो अलग से और पिटो अलग से


    लेकिन जो भी था बहुत प्यारा था
    काश समय को लौटा पाते

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